परिचय
भारत की सबसे बड़ी ताकत उसका ग्रामीण क्षेत्र और वहाँ के मेहनती युवा हैं। आज भी देश की 65% से अधिक आबादी गांवों में रहती है और अगर इन्हें सही अवसर मिलें तो ये भारत को आत्मनिर्भर बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। सरकार और समाज मिलकर यदि ग्रामीण युवाओं को रोज़गार देने के नए अवसर विकसित करें तो बेरोजगारी कम, किसानों में स्थिति सुधार और गांवों से पलायन भी हो सकता है।
आइए जानते हैं 10 नए रोजगार के अवसर, जिनसे ग्रामीण युवाओं का भविष्य बदल सकता है और भारत आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से कदम बढ़ा सकता है।
1- किसान सम्मान निधि के स्थान पर किसानों को केंचुआ खाद उपलब्ध कराना
भारत के किसान रासायनिक उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भर हो गए हैं। इससे जमीन की उर्वरता धीरे-धीरे खत्म हो रही है और उत्पादन तो बढ़ रहा है, किंतु गुणवत्ता और मिट्टी की प्राकृतिक क्षमता घट रही है। ऐसे समय में यदि किसान सम्मान निधि योजना में नकद राशि देने के बजाय सरकार किसानों को केंचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट) उपलब्ध कराए, तो खेत की मिटटी प्राकृतिक रूप से मजबूत बनेगी, जिससे फसल की पैदावार बढ़ेगी और किसानों की आय में इजाफा होगा।
साथ ही ग्रामीण युवाओं को केंचुआ खाद के उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जाए और सरकार द्वारा ग्राम-स्तरीय वर्मी कम्पोस्ट यूनिट स्थापित की जाए, जिससे ग्रामीण बेरोजगार युवाओं को स्थायी रोजगार मिलेगा। सरकार इन यूनिटों से ही केंचुआ खाद को खरीदे और किसानों तक वितरण करे। इस व्यवस्था से किसान को गुणवत्तापूर्ण खाद मिलेगी, युवाओं को आय का स्रोत मिलेगा और मिट्टी की उर्वरता दीर्घकाल तक बनी रहेगी।
इस प्रकार इस योजना से किसानों और ग्रामीण युवाओं को स्थायी लाभ मिलेगा।
2- ग्रामीण क्षेत्र में दूध उत्पादन को प्रोत्साहित करना
ग्रामीण क्षेत्रों में दूध उत्पादन का व्यवसायिक और संगठित स्वरूप अभी भी सीमित क्षेत्रों तक ही है। यदि सरकार ग्रामीण बेरोजगारों को दूध उत्पादन का प्रशिक्षण दे और प्रत्येक गांव में छोटी-छोटी डेयरी यूनिट स्थापित कराए, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में दूध से जुड़ा बड़ा उद्योग विकसित किया जा सकता है।
प्रत्येक ग्राम में दूध उत्पादन का व्यवसायिक और संगठित स्वरूप देने के लिए सरकार द्वारा दूध क्रय समिति बनाई जाए और इन सभी दूध क्रय समिति को अमूल, मदर डेयरी, पतंजलि जैसी बड़ी कंपनियों से अनुबंध जोड़े और कम्पनी गांव से दूध खरीदे और इससे किसानों को दूध का उचित मूल्य मिलेगा और लाखों बेरोजगार युवाओं को रोज़गार मिलेगा।
3- ग्रामीण युवाओं के लिए हर्बल पौधों की खेती और प्रसंस्करण
भारत सदियों से आयुर्वेद और जड़ी-बूटियों का देश रहा है। हर गांव में तुलसी, गिलोय, अश्वगंधा, एलोवेरा, नीम, आंवला, ब्राह्मी जैसी औषधीय आसानी से उगाई जा सकती हैं। यदि ग्रामीण युवाओं को हर्बल पौधों की खेती और उनसे औषधीय उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया जाए, तो यह ग्रामीण स्तर पर रोजगार का एक बड़ा साधन बन सकता है।
सरकार हर्बल मिशन योजना को गांव-गांव में लागू करे और फार्मा उद्योग और आयुर्वेद कंपनियां से अनुबंध करे जिससे कच्चे माल को कंपनियां खरीद सके। और गांवों में संगठित तरीके से हर्बल पौधों की खेती शुरू की जाये और वहीं पर प्रसंस्करण (Processing) करके औषधीय रस, पाउडर, कैप्सूल या अन्य उत्पाद तैयार किए जाएं।
इस प्रकार ग्रामीण युवाओं को रोजगार मिलेगा।
4- ग्रामीण युवाओं को फल-सब्ज़ी प्रसंस्करण में अवसर
ग्रामीण क्षेत्रो में फलों और सब्ज़ियों की बड़े पैमाने पर खेती की जाती है लेकिन जब फसल पक कर तैयार होती है, तो अधिकांश फसल बिना बिके खराब हो जाती हैं जिससे किसानो को बड़ा नुकसान होता है।
यदि ग्रामीण युवाओं किसानो को फूड प्रोसेसिंग (Processing) का प्रशिक्षण दिया जाए, तो वे फलों और सब्ज़ियों से आचार, जैम, जेली, अचार, जूस, पापड़, सुखाई हुई सब्ज़ियाँ आदि को बाजार में बिकने वाले उत्पाद तैयार कर सकते हैं। जिससे युवाओं को पूरे साल रोजगार मिलेगा।
5- ग्रामीण युवाओं को जैविक कीटनाशक उत्पादन के अवसर
कृषि में सबसे बड़ी समस्या कीटों और बीमारियों से होती है। किसान इन समस्याओं से निपटने के लिए महंगे रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं, जिससे लागत बढ़ती है और फसलों में हानिकारक अवशेष रह जाते हैं।
यदि ग्रामीण युवाओं को जैविक कीटनाशक दवाइयां बनाने का प्रशिक्षण दिया जाए और उन्हें यूनिट स्थापित करने का अवसर मिले, तो यह रोजगार का एक नया क्षेत्र बन सकता है।
जैविक कीटनाशक सस्ते, सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। जब किसान इन्हें अपनाएंगे तो न केवल उनकी लागत घटेगी बल्कि उत्पाद की गुणवत्ता भी बेहतर होगी। सरकार ग्राम स्तर पर छोटे-छोटे उत्पादन केंद्रों की व्यवस्था करे और युवाओं को प्रोत्साहित करे।
6- ग्रामीण युवाओं को पशुओं की सामान्य बीमारियों का उपचार एवं कृत्रिम गर्भाधान प्रशिक्षण – एक नये रोजगार के अवसर
भारत का ग्रामीण जीवन पशुपालन पर आधारित है। गाय, भैंस, बकरी और भेड़ ग्रामीण किसानों के लिए दूध, खाद, कृषि कार्य और आजीविका का प्रमुख साधन हैं। लेकिन जब पशु बीमार हो जाते हैं तो किसान को पशु चिकित्सक आसानी से नहीं मिलते हैं और किसानों को पशु का इलाज कराने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। इससे समय और धन दोनों की हानि होती है और कई बार पशु की जान भी चली जाती है।
यदि सरकार ग्रामीण बेरोजगार युवाओं को पशुओं की सामान्य बीमारियों के इलाज एवं कृत्रिम गर्भाधान का प्रशिक्षण दे, तो यह न केवल किसानों की समस्या का समाधान करेगा बल्कि युवाओं के लिए एक नया रोजगार अवसर भी बनेगा।
कृत्रिम गर्भाधान का महत्व
भारत में पशुओं की नस्ल सुधारने और दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए कृत्रिम गर्भाधान एक बहुत ही प्रभावी उपाय है। इससे पशुओं की कमजोर और बीमार नस्लें धीरे-धीरे खत्म होकर अच्छी नस्लें बचती हैं।
आज पूरे देश में आवारा पशुओं की समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। गाँवों और शहरों में खुले में घूमते बैल, गाय और बछड़े खेतों को नुकसान पहुँचाते हैं, सड़क दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं।
परंपरागत ढंग से प्रजनन होने पर अनियंत्रित बछड़े और बैल पैदा होते हैं। लेकिन कृत्रिम गर्भाधान में केवल चुनी हुई नस्ल के वीर्य का उपयोग होता है। और बेहतर नस्ल की मादा संतान (गाय/भैंस) पैदा होने की संभावना अधिक रहती है। जिससे आवारा पशुओं की समस्या जड़ से ही ख़त्म हो जाएगी।
7- ग्रामीण युवाओं को मसाले उत्पादन में अवसर
भारत मसालों का देश है। हल्दी, मिर्च, धनिया, जीरा, गरम मसाला और अन्य मसाले हर घर में उपयोग होते हैं। यदि ग्रामीण युवाओं को मसाले प्रसंस्करण और पैकेजिंग का प्रशिक्षण मिले और उन्हें छोटी-छोटी यूनिट स्थापित करने का अवसर मिले, तो यह एक बड़ा उद्योग ग्रामीण स्तर पर खड़ा हो सकता है।
मसाले ग्रामीण इलाकों में ही उगाए जाते हैं, लेकिन उनका मूल्यवर्धन (Value Addition) शहरों में होता है। यदि गांवों में ही मसाले पीसने, सुखाने और पैक करने की व्यवस्था हो जाए तो ग्रामीण युवाओं को रोजगार मिलेगा और गांव की पहचान भी बढ़ेगी।
8- मिट्टी के बर्तनों से रोजगार सृजन
प्लास्टिक आज पर्यावरण के लिए सबसे बड़ी समस्या है। कप, गिलास और प्लेट जैसे प्लास्टिक उत्पाद न केवल प्रदूषण फैलाते हैं बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हैं। यदि सरकार ग्रामीण युवाओं को मिट्टी के बर्तन बनाने का प्रशिक्षण दे और प्लास्टिक कप-गिलास पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए, तो यह बड़ा परिवर्तनकारी कदम होगा।
मिट्टी के बर्तन बनाने का काम पारंपरिक रूप से गांवों में होता आया है। यदि इसे फिर से आधुनिक रूप में प्रोत्साहित किया जाए तो लाखों रोजगार उत्पन्न हो सकते हैं। गांवों में छोटी-छोटी यूनिट लगाकर कप, गिलास, प्लेट, सुराही और अन्य बर्तन बनाए जा सकते हैं।
9- दही, पनीर और छाछ – शहरी बाजार में बढ़ती मांग
दही: ग्रामीण क्षेत्रों में यदि दूध को सीधे बेचने के बजाय दही बनाकर बेचा जाए, तो उससे दुगना-तिगुना लाभ मिल सकता है। दही की मांग शहरों और गांव दोनों जगह हमेशा रहती है। छोटे-छोटे पैकेट बनाकर स्थानीय दुकानों, होटलों और स्कूलों में इसकी आपूर्ति की जा सकती है।
यदि सरकार ग्राम स्तर पर दही उत्पादन की यूनिट स्थापित कराए, तो बेरोजगार युवाओं और महिलाओं को स्थायी रोजगार मिलेगा। दही की पैकेजिंग और ब्रांडिंग करके शहरों में भी बेचा जा सकता है। इससे गांव के दूध की खपत बढ़ेगी और किसानों को नियमित आय मिलेगी।
पनीर: आजकल शहरी क्षेत्रों में पनीर की मांग सबसे अधिक है। यह शाकाहारी लोगों के लिए प्रोटीन का प्रमुख स्रोत बन चुका है। पनीर से कई स्वादिष्ट व्यंजन तैयार होते हैं और होटलों-रेस्टोरेंट में इसकी खपत बहुत ज्यादा है।
यदि ग्रामीण स्तर पर दूध से पनीर बनाने की यूनिट स्थापित की जाए, तो युवाओं को शहरों में सप्लाई करने का बड़ा अवसर मिलेगा। पनीर का मूल्य दूध से कई गुना अधिक होता है। एक लीटर दूध 50 रुपये में बिकता है, तो उसी दूध से बने पनीर का मूल्य 250–300 रुपये किलो तक पहुंच जाता है। इस प्रकार ग्रामीण युवाओं को अधिक लाभ मिलेगा।
छाछ: छाछ भी भारतीय आहार का प्रमुख हिस्सा है। गर्मियों में छाछ की मांग बहुत अधिक रहती है। यदि गांव स्तर पर छाछ को पैक करके बेचा जाए, तो यह भी एक स्थायी आय का साधन हो सकता है।
यदि सरकार ग्राम स्तर पर इनके उत्पादन की यूनिट स्थापित कराए और युवाओं को इसमें प्रशिक्षित करे, तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का एक नया मार्ग होगा।
10- देशी घी और मक्खन – भारतीय परंपरा और रोजगार का संगम
देशी घी और मक्खन भारत की सबसे पुरानी और लोकप्रिय दुग्ध उत्पाद परंपरा का हिस्सा हैं। गांव-गांव में पीढ़ियों से घरों में देशी घी बनता आया है। देशी घी का उपयोग पूजा-पाठ से लेकर भोजन और आयुर्वेदिक औषधियों तक हर जगह किया जाता है।
ग्रामीण स्तर पर यदि दूध से मक्खन और फिर देशी घी बनाया जाए, तो इसका बाजार मूल्य सामान्य दूध की तुलना में कई गुना अधिक होता है। उदाहरण के लिए, जहां एक लीटर दूध 40–50 रुपये में बिकता है, वहीं उसी दूध से बने देशी घी का मूल्य 800–1000 रुपये किलो तक पहुंच जाता है।
यदि सरकार ग्राम स्तर पर ग्रामीण युवाओं को देशी घी और मक्खन बनाने,पैकिंग व अन्य सम्बंधित जरुरी विषय का प्रशिक्षण दे साथ ही देशी घी और मक्खन को शहरों में बेचें के लिए मदत करे, इससे यह ग्रामीण युवाओं के लिए स्थायी और लाभकारी रोजगार सिद्ध होगा।
FAQ (Frequently Asked Questions)
प्रश्न 1: क्या केंचुआ खाद से वास्तव में किसानों को लाभ होगा?
👉 हाँ, केंचुआ खाद मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है, फसल की गुणवत्ता सुधारती है और यह रासायनिक खाद से कहीं सस्ती और सुरक्षित होती है।
प्रश्न 2 : ग्रामीण क्षेत्र में दूध उत्पादन से बेरोजगार युवाओं को कैसे रोजगार मिलेगा?
👉 दूध क्रय समितियों और छोटी-छोटी डेयरी यूनिट के माध्यम से गांव का दूध सीधे बड़ी कंपनियों तक पहुँचेगा। इससे युवाओं को स्थायी आय मिलेगी।
प्रश्न 3 : क्या जैविक कीटनाशक का बाजार उपलब्ध है?
👉 जी हाँ, आजकल किसान रासायनिक कीटनाशक से दूर हो रहे हैं और जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है।
प्रश्न 4 : क्या मसाले और फल-सब्ज़ी प्रोसेसिंग गांव में संभव है?
👉 हाँ, छोटे-छोटे यूनिट से मसाले, अचार, जूस, पापड़, सॉस आदि तैयार कर ग्रामीण महिलाएँ और युवा दोनों रोजगार पा सकते हैं।
प्रश्न 5 : पशु स्वास्थ्य सहायक बनने से युवाओं को क्या लाभ होगा?
👉 हर गांव में पशुओं की बीमारी आम है। यदि युवा सामान्य उपचार में प्रशिक्षित हो जाएँ, तो उन्हें सेवा के बदले नियमित आय प्राप्त होगी।
प्रश्न 6 :. ग्रामीण युवा इन सभी अवसरों की शुरुआत कैसे कर सकते हैं?
👉 सरकार और NGOs द्वारा उपलब्ध ट्रेनिंग प्रोग्राम और ऋण योजनाओं से लाभ उठाकर।
प्रश्न 7 : क्या सरकार कोई मदद करती है?
👉 कई सरकारी योजनाएँ जैसे PMEGP, Startup India, Mudra Loan आदि ग्रामीण युवाओं को सहयोग करती हैं।
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