प्रस्तावना
20वीं शताब्दी की शुरुआत में अमेरिका में शहरीकरण और इंडस्ट्रियल कामगारों के कारण जल्दी तैयार होने वाला और सस्ता खाना तैयार किया गया।
आज के वर्तमान युग में समय की कमी, भागदौड़ भरी जिंदगी और आकर्षक विज्ञापनों ने फास्ट फूड को हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बना दिया है। लोग स्वाद, सुविधा और स्टेटस के नाम पर रोज़ाना बर्गर, पिज्जा, फ्रेंच फ्राइज, नूडल्स, सॉफ्ट ड्रिंक्स आदि का सेवन कर रहे हैं। लेकिन यही फास्ट फूड धीरे-धीरे हमारे शरीर को अंदर से खोखला कर रहा है। यह किसी तेज़ जहर की तरह तुरंत नहीं मारता, बल्कि धीरे-धीरे हर अंग पर असर डालता है। इसीलिए इसे “स्लो प्वाइजन” कहना बिल्कुल उचित है।
फास्ट फूड की खोज और शुरुआत
1912 – अमेरिका के न्यूयॉर्क में Automat नाम का रेस्टोरेंट शुरू हुआ, जहाँ मशीन से सिक्का डालकर तुरंत खाना मिलता था। यह आधुनिक फास्ट फूड की नींव थी।
1921 – White Castle नामक पहला संगठित फास्ट फूड बर्गर रेस्टोरेंट अमेरिका में खुला। इसे फास्ट फूड इंडस्ट्री का जन्म माना जाता है।
1940 – McDonald’s ने कैलिफ़ोर्निया में अपना पहला रेस्टोरेंट खोला। यहाँ “Speedee Service System” अपनाया गया, जिसने फास्ट फूड को ग्लोबल लेवल पर पहचान दिलाई।
इसके बाद KFC (Kentucky Fried Chicken), Burger King, Pizza Hut जैसी कंपनियाँ आईं और पूरी दुनिया में फास्ट फूड लोकप्रिय हो गया।
फास्ट फूड क्या है?
फास्ट फूड से तात्पर्य उन खाद्य पदार्थों से है जिन्हें जल्दी से तैयार किया जा सके, पैक करके परोसा जा सके और जिन्हें खाते ही स्वाद का तीव्र अनुभव मिले। इनमें अधिकतर शामिल होते हैं –
पिज्जा, बर्गर, पास्ता
चाउमीन, स्प्रिंग रोल
समोसा, पकौड़ी (तेल में तले)
फ्रेंच फ्राइज
पैकेज्ड चिप्स, नमकीन
सॉफ्ट ड्रिंक्स और कोल्ड ड्रिंक्स
पैक्ड मीठी वस्तुएं (केक, पेस्ट्री, डोनट्स)
इनमें स्वाद तो भरपूर होता है, लेकिन पोषण लगभग शून्य के बराबर।
फास्ट फूड की लोकप्रियता के कारण
तेजी से बदलती जीवनशैली – समय की कमी के कारण लोग घर का खाना छोड़कर बाहर का फास्ट फूड खाते हैं।
विज्ञापनों का प्रभाव – टीवी, सोशल मीडिया और सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट ने युवाओं को आकर्षित किया है।
सस्ते और आसानी से उपलब्ध – छोटे-बड़े शहरों के हर कोने में फास्ट फूड स्टॉल और आउटलेट्स मिलते हैं।
स्वाद और आदत – इनमें ऐसे रसायन मिलाए जाते हैं जो स्वाद को बढ़ाते हैं और हमें बार-बार खाने को मजबूर करते हैं।
सामाजिक प्रभाव – पार्टियों, पिकनिक और ऑफिस मीटिंग्स में फास्ट फूड का चलन सामान्य हो गया है।
फास्ट फूड – एक स्लो प्वाइजन (Fast Food – A Slow Poison)
अत्यधिक तेल और वसा
फास्ट फूड में ट्रांस फैट और सैचुरेटेड फैट बहुत ज्यादा होते हैं। यह हृदय रोग, मोटापा और हाई कोलेस्ट्रॉल का बड़ा कारण है।
अत्यधिक नमक
पैक्ड फूड और स्नैक्स में सोडियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हाई ब्लड प्रेशर और किडनी की बीमारियाँ होती हैं।
शुगर की अधिकता
सॉफ्ट ड्रिंक्स और पैक्ड मिठाइयों में शुगर की मात्रा खतरनाक स्तर तक होती है। इससे डायबिटीज और मोटापा फैलता है।
रसायन और प्रिज़र्वेटिव्स
स्वाद और लंबे समय तक टिके रहने के लिए इनमें रंग, फ्लेवर और रसायन मिलाए जाते हैं। ये शरीर में धीरे-धीरे कैंसर जैसी घातक बीमारियों को जन्म देते हैं।
फाइबर और पोषण की कमी
फास्ट फूड में न तो पर्याप्त विटामिन होते हैं, न मिनरल्स, न ही फाइबर। इसका लगातार सेवन शरीर को कमजोर करता है।
फास्ट फूड से होने वाले प्रमुख रोग
मोटापा (Obesity)
डायबिटीज (Diabetes)
हृदय रोग (Heart Disease)
उच्च रक्तचाप (High BP)
लिवर रोग (Fatty Liver, Cirrhosis)
कैंसर का खतरा
पाचन संबंधी समस्याएँ (Acidity, Constipation)
मानसिक रोग (डिप्रेशन, तनाव)
बच्चों में विकास रुकना
समय से पहले बूढ़ापा
समाज और आने वाली पीढ़ियों पर असर
बच्चे जंक फूड को पसंद करने लगे हैं और सब्ज़ी-दाल-चपाती से दूरी बना रहे हैं।
युवाओं में कार्यक्षमता और एकाग्रता कम हो रही है।
बीमारियों के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है।
स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च का बोझ लगातार बढ़ रहा है।
धीरे-धीरे पूरा समाज अस्वस्थ और कमजोर बन रहा है।
फास्ट फूड से बचने के उपाय
घर का भोजन प्राथमिकता दें
दाल, चपाती, सब्जी और सलाद को दिनचर्या में शामिल करें।
स्वस्थ स्नैक्स
भूख लगने पर फल, नट्स, भुने चने खाएँ।
फास्ट फूड की मात्रा और आवृत्ति कम करें
हफ्ते में एक बार भी फास्ट फूड न लें।
बच्चों को जागरूक करें
उन्हें घर का खाना स्वादिष्ट बनाकर दें।
रेगुलर एक्सरसाइज
शरीर से अनावश्यक फैट बाहर निकालें।
लेबल पढ़ने की आदत डालें
पैक्ड फूड खरीदने से पहले देखें उसमें शुगर, नमक और ट्रांस फैट कितना है।
पानी और हर्बल ड्रिंक्स लें
कोल्ड ड्रिंक्स की जगह नारियल पानी, छाछ, ग्रीन टी का सेवन करें।
सरकारी स्तर पर कदम
सभी स्कूल-कॉलेज की कैंटीन में जंक फूड पर पूरी तरह से रोक लगे।
पैक्ड फूड पैकिंग पर चेतावनी लेबल (जैसे सिगरेट पर होता है) लगाया जाए।
जंक फूड के विज्ञापन पर रोक लगे।
समाज स्तर पर पहल
सभी स्कूल-कॉलेज में हेल्दी फूड फेस्टिवल और वर्कशॉप आयोजित किये जाये।
सभी स्कूल-कॉलेज में योग और आयुर्वेद को बढ़ावा दिया जाए।
हेल्दी खाने की आदत को “फैशन” बनाया जाए।
व्यक्तिगत स्तर पर
हर इंसान अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे।
बच्चों को बचपन से ही पोषणयुक्त आहार की आदत डाले।
धीरे-धीरे फास्ट फूड की जगह घर का खाना ट्रेंड में लाएँ।
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