नीम करोली बाबा भारत के एक महान संत, योगी और हनुमान जी के प्रतिरूप संत थे जिनका जीवन रहस्यमय और चमत्कारिक घटनाओं से भरा हुआ था। नीम करोली बाबा बचपन से ही राम नाम का ध्यान और हनुमान जी की पूजा करते थे। वे बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे और आगे चल कर उन्होंने सांसारिक बंधनों को त्यागकर संन्यास ले लिया। नीम करोली बाबा एक दिव्य आत्मा थे, जिन्होंने अपने जीवन से लोगों को प्रेम, भक्ति और सेवा का महत्व समझाया।
नीम करौली बाबा जी ने राजकोट (गुजरात) के एक आश्रम में कठिन साधना सुरु कर दी और कठोर साधना और समर्पण, भक्ति और सेवा से प्रभावित होकर आश्रम के महंत जी ने आश्रम का उत्तराधिकारी बना दिया और नीम करोली बाबा जी का नया नाम लक्ष्मण दास रख दिया।
नीम करोली बाबा जी ने गुजरात के वावनिया गाँव के एक तालाब में तपस्या करने लगे और ग्राम के लोग इसी कारण से उन्हें “तलैया बाबा” के नाम से पुकारने लगे। बाबा जी ने वावनिया गाँव में एक हनुमान मंदिर की स्थापना की थी, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
लक्ष्मण दास से नीब करौरी बाबा एवं चिमटा से रेलगाड़ी को रोका
बाबा लक्ष्मण दास चिमटा कमंडल लिए फर्रुखाबाद स्टेशन पर रेलगाड़ी के प्रथम श्रेणी के एक डिब्बे में बैठ जाते हैं, गाड़ी के कुछ किलोमीटर चलने के बाद डिब्बे में एक टिकट चेक करने के लिए टिकट कलेक्टर आ जाता है और टिकट कलेक्टर साधु के भेष में बाबा लक्ष्मण दास को देखकर चौक जाता है।
टिकट कलेक्टर बाबा लक्ष्मण दास से टिकट मंगता है और लक्ष्मण दास के सही उत्तर न देने पर वह नाराज हो जाता है और अगला स्टेशन आने से पहले ही नीब करौरी गांव के पास रेलगाड़ी को रुकवा देता है और बाबा लक्ष्मण दास को टिकट कलेक्टर रेलगाड़ी से नीचे उतार देता है।
बाबा लक्ष्मण दास अपना चिमटा वही गाड़ देते हैं, इसके बाद टिकट कलेक्टर गाड़ी को चलाने के लिए सिग्नल देता है, लेकिन गाड़ी आगे नहीं बढ़ती है, रेलगाड़ी के इंजीनियर भी इंजन को चेक करते हैं, लेकिन कोई खराबी नहीं मिलती है, इंजीनियरो को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें और अन्य गाड़ियों के आने जाने का समय हो चला था।
रेलगाड़ी में बैठे यात्री बहुत परेशान होने लगे, कुछ यात्रियों ने रेलगाड़ी के अधिकारियों को बोला कि आप उन साधु को वापस गाड़ी में बैठा लो, तभी यह गाड़ी आगे चल पाएगी, पहले तो रेलगाड़ी के सभी अधिकारीओ ने यात्री की बात मानने से मना कर दिया लेकिन एक प्रैक्टिकल के तौर पर उन्होंने साधु महात्मा को मनाने का निर्णय लिया और बाबा लक्ष्मण दास से टिकट कलेक्टर और अन्य रेलवे के अधिकारी माफी मांगते हैं और उनसे पुनः रेल गाड़ी में बैठने की प्रार्थना करते हैं।
बाबा लक्ष्मण दास उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हैं और इसी बीच नीब करौरी गांव के लोग इकट्ठे हो जाते हैं और गांव वाले बाबा लक्ष्मण दास से कहते हैं कि आज इस गांव का भी बाबा उद्धार कर दीजिए यहां दूर-दूर तक कोई स्टेशन नहीं है जिससे गांव वालों को आने जाने में बड़ी समस्या होती है।
बाबा लक्ष्मण दास जी गांव वालों के इशारों को समझ जाते हैं, और वह रेलवे विभाग के अधिकारियों को बोलते हैं कि मेरी दो शर्ते हैं पहेली शर्त यह है कि आप यहां एक स्टेशन बनायेंगे और दूसरी शर्त यह है कि आज के बाद जो भी साधु संत रेलगाड़ी में बैठेंगे उनको कोई भी अपमानित नहीं करेगा, रेल विभाग के अधिकारियों ने बाबा लक्ष्मण दास की दोनों शर्तो को मान लिया और बाबा लक्ष्मण दास जी ने अपना चिमटा वहां से उखाड़ लिया, इसके बाद ही रेलगाड़ी आगे के लिए बड़ी।
नीब करौरी नाम से एक रेलवे स्टेशन बना और यह चमत्कार पूरे भारत में बहुत तेजी से प्रसिद्ध हो गया और इसी घटना से बाबा लक्ष्मण दास अब नीब करौरी बन गए।
नीब करौरी गांव में किए गए चमत्कारों की छोटी सी श्रृंखला
गोपाल नाम का भक्ति महाराज जी को रोज दूध, फल पहुँचाता था, महाराज जी ने गोपाल से कहा था कि मेरी बिना आज्ञा के गुफा के अंदर कभी नहीं आना है क्योंकि गुफा के अंदर महाराजा जी पूजा,जप ,तप करते हैं।
लेकिन गोपाल एक दिन जल्दी में दूध, फल और भोज्य पदार्थ लेकर गुफा के अंदर बिना आज्ञा के चला जाता है और गोपाल देखता है कि महाराज जी के ऊपर बड़े-बड़े सर्प खेल रहे हैं , गोपाल यह देखकर बेहोश हो जाता है और वहीं गिर जाता है।
इसी श्रृंखला में दूसरा चमत्कार महाराज जी गांव वालों से मित्रवत संबंध रखते थे और इसी मित्रवत संबंध से महाराज जी आम के बागों में जाकर अलग-अलग तरीके के खेल खेला करते थे।
महाराज जी को गांव वाले कभी पकड़ नहीं पाते थे क्योंकि महाराज जी एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर और एक शाखा से दूसरी शाखा पर कब पहुंच जाते थे गांव वाले समझ ही नहीं पाते थे लेकिन महाराज जी गांव वालों को पल भर में पकड़ लेते थे।
इसी श्रृंखला में महाराज जी का अगला चमत्कार यह है कि नीब करौरी गांव के लोग गंगा स्नान हेतु घटियाघाट फर्रुखाबाद महाराज जी से पहले गांव से निकल जाते थे लेकिन गांव वाले देखते की महाराज जी पहले से ही घटियाघाट पर मौजूद है।
इसी श्रृंखला में महाराज जी का अन्य चमत्कार यह है कि नीब करौरी गांव के लोग कभी-कभी वृंदावन जाते थे और महाराज जी से पहले जाते थे लेकिन गांव वाले वृंदावन में देखते हैं कि महाराज जी हमसे पहले ही मौजूद हैं ।
और फिर गांव वाले वृंदावन से महाराज जी से पहले चलते थे लेकिन वापस गांव में आकर देखते हैं कि महाराज जी पहले से ही गुफा में मौजूद है।
इसी प्रकार नीब करौरी गांव में ही महाराज जी ने बहुत चमत्कार किये लेकिन वह गांव वालों के साथ मित्रवत धर्म के साथ रहते थे यह तो सिर्फ नीम करोली बाबा के चमत्कारो की छोटी सी श्रृंखला है।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
Q1: कैंची धाम कहाँ स्थित है?
👉 उत्तराखंड के नैनीताल जिले में, भवाली-अल्मोड़ा रोड पर।
Q2: स्थापना दिवस पर क्या-क्या आयोजन होते हैं?
👉 विशेष पूजन, विशाल भंडारा, अखंड कीर्तन।
Q3: क्या इस दिन सभी को भंडारे में भोजन मिलता है?
👉 हाँ, सभी भक्तों को निशुल्क प्रसाद (भोजन) उपलब्ध कराया जाता है।
Q4: क्या यहाँ रहने की सुविधा मिलती है?
👉 जी हाँ, लेकिन पहले से बुकिंग कराना उचित रहेगा। आसपास कई होटल एवं धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं।
दिल्ली से कैंची धाम नैनीताल जाने के लिए जानकारी
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से……वाघ एक्सप्रेस और रानीखेत एक्सप्रेस ट्रेन- काठगोदाम के लिए रात को चलती है, जो सुबह के समय काठगोदाम पहुँचती है, और अब आप काठगोदाम बस स्टेशन से टैक्सी के माध्यम से सीधे नीम करोली बाबा आश्रम कैंची धाम मंदिर नैनीताल पहुंच जायेंगे और टैक्सी का किराया प्रति सबारी 200 Rs नीम करोली बाबा आश्रम कैंची धाम मंदिर नैनीताल तक हैं।
दिल्ली आनंद विहार बस स्टेशन से …… नीम करोली बाबा आश्रम कैंची धाम मंदिर नैनीताल जाने के लिए आप सीधे हल्द्वानी के लिए आये, और हल्द्वानी से नीम करोली बाबा आश्रम कैंची धाम मंदिर लगभग 44 KM की दूरी पर है, अब आप हल्द्वानी बस स्टेशन से ……. टैक्सी के माध्यम से सीधे नीम करोली बाबा आश्रम कैंची धाम मंदिर नैनीताल पहुंच जायेंगे और टैक्सी का किराया प्रति सबारी 200 Rs से 250 Rs नीम करोली बाबा आश्रम कैंची धाम मंदिर नैनीताल तक हैं।
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