भारत एक कृषि प्रधान देश है, भारत की लगभग 60% जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। कृषि किसानो की केवल आजीविका का साधन ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और आत्मनिर्भरता की पहचान भी है। बावजूद इसके भी देश के किसानों और युवाओं का खेती से मोह भंग होता जा रहा है। और किसानो की यह सोंच न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से चिंताजनक है, बल्कि सामाजिक असंतुलन और खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरे की घंटी है। आइए इस विषय पर विस्तृत विश्लेषण करें।
किसानों और युवाओ का खेती से मोह भंग होने के कारण
देश के किसान और युवा दोनों ही खेती से दूर हो रहे हैं क्योंकि अब खेती लाभ का पेशा नहीं रहा। देश के किसान और युवा की यह दूरी हमें आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से कमजोर कर सकती है। किसानों और युवाओ का खेती से मोह भंग होने के निम्न कारण हैं –
1-फसल का मूल्य तय करने का अधिकार न होना
भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत को आजाद हुए 75 साल हो चुके हैं फिर भी भारत में किसान को अपनी फसल का मूल्य तय करने का अधिकार नहीं है। फसल मेरी और मालिक सरकार क्यों?
भारत से अंग्रेज तो चले गए लेकिन आज भी इस देश के किसान के अधिकार गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं। जबकि इसी भारत का कोई भी व्यापारी किसी भी प्रकार का कोई भी उत्पाद (प्रोडक्ट ) बनाता है तो उसे अपने उत्पाद (प्रोडक्ट) का मूल्य तय करने का अधिकार है।
भारत में यह कैसा भेद-भाव है ? सोंचने की जरुरत है ,विचार करने की जरूरत है।
2-फसल का अच्छा मूल्य न मिलना
मंडी के व्यापारी /बिचौलिये किसानों की फसल को कम दाम पर खरीदते हैं। क्योंकि फसल तैयार होने के समय बाजार में ज्यादा फसल आने से मंडी में अचानक कीमत गिर जाती है और किसान अपनी फसल की लागत निकालने में असमर्थ हो जाता है। इससे किसान की आर्थिक स्थिति पहले से भी ज्यादा कमजोर हो जाती है और वह कर्ज में डूबता चला जाता है।
इसी क्रम में यदि किसान अपनी फसल को ग्रामीण बिचौलिए को बेचना चाहता है तो वह भी किसान की फसल को मनमाने दाम पर खरीदते हैं। इस प्रकार किसान को सरकार और बिचौलिए दोनों ही शोषण करते हैं इन दोनों कारणों से ही किसान को फसल का मूल्य अच्छा नहीं मिल पाता है।
3-लागत में वृद्धि और सरकारी उदासीनता
बीज, उर्वरक, कीटनाशक, डीज़ल, मशीनरी और मजदूरी की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिससे खेती करना एक महंगा सौदा बन गया है। इससे लाभ कम और कर्ज़ का बोझ ज्यादा बढ़ता है। खेती भारत की सबसे बड़ी आजीविका देने वाली व्यवस्था है लेकिन सरकारें इसे प्राथमिकता नहीं देतीं हैं।
कृषि बजट का हिस्सा हमेशा सीमित रहना ,किसान बीमा योजनाएं, MSP ,कृषि शोध केंद्रों की नई जानकारी केवल कागजों तक सीमित रहती हैं।
4-अधिक रसायनों के उपयोग के कारण बंजर बनती भूमि
रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग करने से भूमि की संरचना और मिट्टी में जैविक तत्व जैसे केंचुए और अन्य लाभकारी सूक्ष्म जीव मर रहे हैं। लंबे समय तक रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग से भूमि की जल धारण क्षमता कम हो जाती है। परिणामस्वरूप भूमि बंजर हो जाती है। और भविष्य में किसान की आजीविका पर संकट आ सकता है।
5- खेती-बाड़ी से युवाओं की दूरी होना
आज का ग्रामीण शिक्षित युवा खेती को पुराना, जोखिमपूर्ण और घाटे वाला धंधा मानते हैं। इससे खेती का ज्ञान और परंपरागत अनुभव धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। ग्रामीण शिक्षित युवा नौकरी करने के लिए अपना गांव ग्रामीण क्षेत्र छोड़कर शहर की ओर पलायन करते हैं इस प्रकार शिक्षित ग्रामीण युवाओ का खेती से मुंह भांग हो रहा है
ग्रामीण शिक्षित युवा खेती में अनाज इसलिए उगाता है की उसके किचन की जरूरत पूरी हो सके, क्योंकि खेती घाटे का सौदा है ,जमीन से इतनी पैदावार नहीं होती है कि उसका भविष्य बन सके, लागत बहुत ज्यादा है और फसल का मूल्य बहुत ही कम है इन दोनों का अंतर जमीन और आसमान के समान है, इसीलिए युवा शहरों की चमक-दमक और नौकरी के अवसर देखकर गांवों को छोड़ कर जा रहे हैं।
6- कोल्ड स्टोरों की संख्या कम होना
किसानों की फल-सब्जियों की फसल 20-25 % कोल्ड स्टोर न होने के कारण खराब हो जाती हैं और छोटे किसानों के लिए कोल्ड स्टोरेज का किराया बहुत महंगा होता है।
इस प्रकार किसान का दो तरह से नुकसान होता है पहला फल-सब्जियों की फसल खराब होने से और दूसरा फसल के स्टोरेज न होने के कारण मंडी में दाम कम मिलना।
7- डीजल और पेट्रोल के दामों मे लगातार वृद्धि होना
डीजल की कीमतों में वृद्धि का सीधा असर खेती पर पड़ता है। ट्रैक्टर, पंप, ट्रांसपोर्ट सब डीजल पर निर्भर हैं। डीजल महंगा होने से सिंचाई की लागत और परिवहन खर्च बढ़ता है। इससे बाजार तक फसल ले जाना महंगा हो जाता है।
8- जल संकट और सिंचाई की समस्या
समय पर बारिश ना होने से फसल की बुवाई समय से नहीं हो पाती है और छोटे किसानों के पास सिंचाई के साधन नहीं होते हैं, ऐसे किसान वर्षा पर निर्भर रहते हैं। या फिर किराये पर अपनी फसल की सिंचाई करते हैं, जिससे फसल की लागत बढ़ जाती है। जलवायु परिवर्तन के कारण यह स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है।
9- कृषि में तकनीक और प्रशिक्षण की कमी
आज का युवा टेक्नोलॉजी की ओर आकर्षित है, परंतु कृषि में अभी भी पुराने तौर-तरीके अपनाए जाते हैं। नई तकनीक, ड्रोन, स्मार्ट सिंचाई, और जैविक खेती जैसे नवाचारों की जानकारी गांव-गांव तक नहीं पहुंची है।
10- कृषि को लेकर सामाजिक मानसिकता
आज भी समाज में यह धारणा है कि खेती ‘अंतिम विकल्प’ है। शिक्षित युवा खेती को सम्मानजनक पेशा नहीं मानते, जिसके कारण वे नौकरी या शहरों की ओर पलायन करते हैं।
11- आवारा पशुओं के द्वारा फसलों का नष्ट करना
उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि में आवारा पशुओं (गाय, बैल, बछड़े आदि) का संकट तेजी से बढ़ रहा है।
आवारा पशु दिन-रात खेतों में घुसकर फसलों को चर लेते हैं या फसल को पैरो से रौंद देते हैं। किसानों को रातभर खेतों में पहरा देना पड़ता है, जिससे उनकी दिनचर्या और स्वास्थ्य प्रभावित होता है। किसान आवारा पशुओं से फसल को बचाने के लिए कंटीले तार या महंगे बाड़ लगाने को मजबूर हो रहे हैं, जिससे लागत और बढ़ रही है।
फसलों को रौंदने से किसान की साल भर की मेहनत और लागत बेकार चली जाती है। कई बार आवारा पशुओं से पूरे गांव के खेत बर्बाद हो जाते हैं।
इस संकट का समाधान न होने से किसानों में गहरा असंतोष पनप रहा है। यदि यह समस्या दूर नहीं हुई तो खेती छोड़ने का सिलसिला और तेज हो जायेगा।
नीचे दिए गए चित्र में आवारा पशु खेत में घुसकर फसलों को चरते हुए…..
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